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Shravani Balasaheb Sul

Abstract

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Shravani Balasaheb Sul

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मुग्ध

मुग्ध

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दिवाली का रूप न्यारा, हर दीया कोई सितारा 

जगमगाता यह अंधेरा, आज उजालों से भी प्यारा


प्रकाशमालाओं की चमक में, कुटिया भी महल लगे

यह रूप लुभावना जैसे, जिंदगी की नई पहल लगे


बीते अंधकार को भुलाने का, यह आमंत्रण हो जैसे

खिलती हसती रंगोली, नए आरंभ का चित्रण हो जैसे


सुमनों के रंगबिरंगे मोती, आशाओं के धागों में पिरोकर

सजा हैं सदन सुहाना, पुष्पमालाओं में मुग्ध होकर।


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