चिट्ठी
चिट्ठी
माता पिता का सिराहना,बच्चों का लेखन अभ्यास
विरहन की सहेली,प्रियतम के हाथों का अहसास,
जस्बातों का असीमित दरिया,दूर होकर पास रहने का जरिया,
रिश्तों के सतरंंगी आसमां पर,शब्दों के पंछी उड़ाती थी,
वो भी क्या दिन थे?जब चिट्ठी संदेश लेकर जाती थी,
वो डाकिये की आवाज, साईकिल की घंटी,खाकी वर्दी
वो चिट्ठी के ढेर में,अपनी चिट्ठी के हाथ में आने की जल्दी,
वो नीली आभा वाली अंतर्देशी पाकर ,आंखों का चमकना,
वो लिखी बातों को पढकर,खुद कल्पना के झरोंखे से झांकना
बेसब्री,इंतजार, मुस्कुराहट, खुशियों का सबब बन जाती थी,
वो भी क्या दिन थे ? जब चिट्ठी संदेश लेकर जाती थी।
