जिए जा रही हूँ
जिए जा रही हूँ
टूटी ख़्वाहिशें, रूठी तकदीर है कोई क्या करें,
नैंनो के दृग में स्वप्नों की क्षीण सरिता पाले जिए जा रही हूँ
जीवन में तूफ़ान के गीले बादलों का गान भरे जिए जा रही हूँ।
किया बहुत तोड़ मरोड़ संघर्षों के मधुवन सजाए जिए जा रही हूँ
अज्ञात दिशा ना मंज़िल दिख रही कंटीली राहों पर चलते जिए जा रही हूँ।
तमस घिरी ज़िंदगी में वितान नहीं उजियारा उम्मीदों के चिराग जलाए जिए जा रही हूँ
तृषित लब हंसी को तरसे मुखौटा बनावट का मुख पर सजाए जिए जा रही हूँ।
आहटहीन उर का अंबर ख़्वाब बड़े भयंकर, फिर भी स्वप्न मंजूषा लिए जिए जा रही हूँ
उम्र के अस्ताँचल पर आग लिए सुहानी भोर तरसते उदासीन हर शाम के लम्हें जिए जा रही हूँ।