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Rabindra Mishra

Tragedy Inspirational

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Rabindra Mishra

Tragedy Inspirational

चले हाथ पे हाथ थाम कर

चले हाथ पे हाथ थाम कर

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सच्चाई ये है कि

चंद लोग सोने की चमच मुँह में लेकर

आए हैं इस धरती पर

 उन लोगों के साथ तकदीर भी 

ऐसे चिपकी हुई है

कि सिवाय वो लोग,

इस दुनिया कुछ भी नहीं है।

 

उन लोगों के इशारे पे

बदल भी सकता है धर्म और कानून

वो लिखते हैं नियम

पीछे से कैसे जैसे मालूम नहीं

पर राज़ तो उनका चलता है

बाकी कुछ भी नहीं है।


दूसरे और एक बड़े अवाम

जो सुबह होते ही उठकर सोचते हैं

कैसे होगा आज का गुजारा

पूरा दिन जो सामने

कांटे की तरह चुभते हैं

पेट में भूख, कंधे पे पैदा इस कर्ज़ा

बाकी कुछ भी नहीं है।


इस मझधार में एक अलग

ऐसे उलझे हुए हैं कि ना तो ऊपर

या बिल्कुल नीचे से गुजारा कर पाते हैं

बस उम्मीद ही जीवन का जरिया

सपने देखते हैं,

लड़ाई लड़ते हैं

बाकी कुछ भी नहीं है।


ये सही है क्या जिनकी

जरियाऔर रहन सहन के तरीके

कुछ जी भर कर लूटते हैं

कुछ भारी मेहनत के बाद

जो मिला खाकर सो जाते हैं

बीच के झूलन में मझधार,

ना जीते या मर पाते हैं

बाकी कुछ भी नहीं है।


कहावत है कि

एक हाथ से ताली बजती नहीं,

दूसरे हाथ का साथ जरूरी

जानते हुए भी भूल करते

आपस में बैर और नफरत

बढ़ाकर खुद को

मिटाने के गड्ढे खोदते हैं

बाकी कुछ भी नहीं है।


एक बार इसे समझ ले

बस थोड़ा सा मुस्कराहट

और हाझ पे हाथ

थाम ले तो दुनिया होगी मुट्ठी में

एक और एक दो नहीं

ग्यारह बनकर 

समझ लो नया दौर आएगा, 

बाकी और कुछ नहीं।


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