कौन हूँ मैं
कौन हूँ मैं
इंसान हूॅं
पढ़ा-लिखा हूॅं
इसीलिए कुछ अलग सोच सकता हूँ
आम आदमी की सोच से अलग
कुछ हटकर
कागज़-कलम पे उसे उतारता हूँ
जो आप-वो, हम-तुम कहते हो
वही मैं भी कहता हूॅं
पर कहेनेका तरीका, लफ्जों की अल्फाज
हटकर-सजाये हुए
होंठ या कलम पे
ऐसे उतरते है कि
दिल और दिमाग उसमे खो जाते है
पढ़ने या सुनने
लोगो को ऐसे खींच लेता है
जैसे फूल भॅंवर को
सूरज कमल को
या साॅंस खिंचता है प्राण पंखेरून को
भावनाओं को चित्रपट की तरह
ऐसे रंगोंसे सजाता हूँ
जो देखने या सुनने वालों को
पागल बना देता है
जिसे चाहते हुए भी भूल नहीं पाते
हटाना चाहे तो हटा नहीं पाते
समाझाता है
दिल और दिमाग में
ओढ़ लेता है अपने आगोश में
हर वक़्त-हर पल अंदर ही अंदर
बेस ही करने को
प्रेरित करता है
उसी रास्ते पे चलने को
आवाज़ देता है
जैसे, माता-पिता राह दिखाते है बच्चों को
शिक्षक दिशा देते है छात्र - छात्राओं को
बुजुर्ग टोकते है आने वाले काल को
कौन हूॅं मैं
सवाल का जवाब है-
"कवि" हूँ या
लेखक हूॅं या
चित्रकार हूँ-
जो आम सोच से अलग सोचता हूँ
चुने हुए शब्द या रंगों से
अलग लिखता हूँ
कभी आम आदमी से प्रेरित होता हूँ
लेकिन अपनी सोच और विचार से
अपने तकिया और कलम से
अवाम को प्रेरित करता हूॅं।
