बिखरे सपने
बिखरे सपने
घर में पैदा होते ही बच्चे
खुशियाँ नहीं ग़म फैल जाते हैं
सर के ऊपर ऋण का बोझ
पैदाइश लाद दिया जाता है।
बचपन का सपना धूमिल
शिक्षा महँगा- व्यपारियों के हाथ में
पढ़ाई का नाम पैसा वसूली
ताकत नहीं भरपाना
हम-तुम आम आदमी के
फटे जेब में।
जवानी की उमंग है दिल में
चल पड़े साकार करने सपने
नौकरी नहीं-कहा गया मंदी
हाथ छोड़ यूँ अकेला
भाग गए सब रिश्ते अपने।
बुढ़ापे की उम्र, सेहत की सोच
दवाई ले पाना नहीं आसान
दवाई खाने जो चले गए
हैं आलीशान बंगले पे
खाली जेब कैसे खरीदेगा इंसान ।
बचपन गयी-बिगड़ी जवानी
बिखर गए अरमान
महँगाई मारा- रोजगार नहीं
अब क्या करे अवाम ?
फटी जेब- टूटा सपना
कुछ करना होगा हमें ज़रूर
हाथ पे हाथ लेकर चलना
युद्ध करेंगे होके एक सुर।
