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Rabindra Mishra

Others

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Rabindra Mishra

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पराई हुॅं मैं पराई

पराई हुॅं मैं पराई

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पराई हुॅं मैं पराई

पैदा होतेही मैकेसे

मिलजुलकर मेरी जेहेन में

बिठा दिए बड़े प्यारसे

की-ये गालियां ये चौबारा

मेरी नहीं है बस में

एक मेहमान हुॅं-कुछ सालोंकी

जिसे उस घरकी खातिर

उस गलियारे की झातीर

पालपोष कर राखेहें ये

जब बुलावा आएगा उस घरसे

सौंप देंगे उस हाटमे

जिसकी मेहमान हुॅं में

कईं की पराई हुॅं मैं पराई ।1।


मेहमान घर छोड़कर

आ गयी इस घर की चौखट पे

कितनी सारे अरमान

कितने सारी उमंगे

अब बसाउंगी घर अपना

अपनी इच्छा से

अपनी सोच और बिचार से

रंग रंगाऊंगी इस गलियरेकी

जहाँ हर तरफ खुसी ही खुसी होगी

इंद्रधनुष की सात रंगसे

सपने चुराकर खुशियां ही खुशियां भरूँगा

मेहमान नहीं, अपना है ये घर मेरी ।2।


हए-ये क्या हुआ

मेरे आते ही घंटी बजने लगी

माॅं गाती रहे-मेरा बेटा पराया हो गया

बहन रो पड़ी-मेरे भाई-सब भूल गए

बाप चिल्ला उठे-तू आते ही

घर को बटवारा कर दिया

मिलजुल कर रहते थे हम

ये कौन आ गया

हम सब को अलग कर दिये

समय की दर्पण में एक धुन्दला से छबि

ना चाहते हुए भी

मुझे अलग कर दिये, क्यों कि

पारी गन नें परइ। ।3।


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