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Rabindra Mishra

Tragedy

3  

Rabindra Mishra

Tragedy

पति-पत्नी-और बटुआ

पति-पत्नी-और बटुआ

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पति ने पूछा पत्नीसे

तुम करते हो प्यार मुझे कितना?

बस सवाल ने चालू कर दिया गाना

बिना कोई रुकावट में।


आशा की गाने से चंचल

पंचम की संगीत से भी और तेज

मधुबाला की हुस्न को मात देती

गुनगुनाई पति के कानों में।


हए! तुम क्या हो

क्या जानो तुम दिलबर मेरे

झील में तैरता नया

बेसे तैरते हो यूँ मेरे दिल में।


सुबह होते ही तुम

सूरज की तरह उजाले लाते हो

दीपक बनकर आंखोमें

तुम जलते हो रात की अंधियारे में।


एक बार छाती पे हाथ

रखके देखो-दिल मेरा कैसे धड़कता है

ये दिल तुम बिन पिया

बस मुरझा जाती है तुम्हारी चाहत में।


पत्नी की चाहत सुन कर

दिल यूँ तार तार होगया

बेकाबू पति खुशी से

ले लिया पत्नी को अपनी बाहों में।


छोड़ दूं यह नौकरी

तंग आ गया हूं खुद को बेचते

शुरु करते हैं कुछ अपना

शान है शेर उठाकर जीने में।


क्या कह दिया पति ने

झट बदल गया सुरीला धुन

बटुए में पैसा नहीं

तो क्या जिएंगे हवा खाने में।


करधनी थी वो नेकलेस

झुलस रहता जो हीरे से लदे हुए,

गाड़ी भी लाना हॉग

नहीं तो पार्टी जाऊं किसी मुहं में।


ये छोटा सा घर

क्या है- देखो अपने चारों और

आलिशान बंगले के

बीच-दिखता कौआ हंसो की झुंड में।


हर दिन-हरपल कितनी

यूँ सजाती हुन अनगिनत सपने

पूरे होंगे मेरे जान

ठन ठन जो राखतेहो अपने जेब में।


समझ गए श्री पतिदेव

यह प्यार ये चाहत सब दिखावा,

कोई नहीं है किसी का

नज़र है सिर्फ अपने फूले हुए बटुए में।


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