थोड़ा प्यार जमाने को सिखा आऊँ
थोड़ा प्यार जमाने को सिखा आऊँ
कुछ अल्फ़ाज़ लिखे है मैंने,
चलो जमाने को सुना आऊँ।
बड़ा नीरस सा लगता है जमाना,
थोड़ा प्रेम रस उन्हें भी पिला आऊँ।
जाना नहीं जिन्होंने मोहब्बत को कभी,
स्वाद मोहब्बत का जरा उन्हें भी चखा आऊँ।
सुना के चंद अल्फ़ाज़ इश्क़ के,
उन्हें भी तो किसी का दीवाना बना आऊँ।
इक़ सवाल अहसान फरामोशो से भी कर आऊँ,
क्या जरा भी उन्होंने तेरा दिल दुखाया था ?
तरसती है वो निगाहें आज तेरी इक़ झलक को,
बड़ी बेरहमी से जिनको तू वृद्धाश्रम छोड़ आया था।
कुछ अल्फ़ाज़ लिखे है मैंने,
चलो जमाने को सुना आऊँ।
बड़ा नीरस सा लगता है जमाना,
थोड़ा प्रेम रस उन्हें भी पिला आऊँ।