भूल जाता हूँ!!
भूल जाता हूँ!!
किनारा कर किनारे से, मैं किनारा भूल जाता हूँ।
लगा डरने क्यों अंधेरो से ,हूँ जुगनू भूल जाता हूँ।।
इक लौ सा अब लगा जलने ,जा उसी पेशानी पर।
है खुला दरीचा भी वहाँ , बंद करना भूल जाता हूँ।।
तिश्नगी सी है दिल में,उस गुलिस्तां के हिफाजत की।
याद एक बर्ग ए गुल वहीं ,पूरा चमन भूल जाता हूँ।।
इंतज़ार ए कमर निगाहों में, फरागत चुरा कर बैठा हूँ,
आफताब आसमां में है, मैं रात करना भूल जाता हूँ।।
मौसम हुआ अब बारिशों का,आजार कुछ ऐसे भी।
है माटी का मकां मेरा, मैं छत बनाना भूल जाता हूँ।।