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Aman Nyati

Abstract

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Aman Nyati

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माँ

माँ

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एक किस्सा है वह

हर किसी की ज़िंदगी का हिस्सा है वह।

जब माँ का कॉल आता है,

हैलो बोलते ही सीधा इक सवाल आता है,

बेटा कैसा है तू ?

अब कब आ रहा है तू ?


बड़े दिन हो गए तुझसे मिले,

अब बहुत याद आ रहा है तू।

जैसा घर से निकला था

ना वैसा ही फिर लौटता हूँ,


पता नहीं क्यूं ?

माँ को मैं थोड़ा दुबला नजर आता हूं,

अब उन्हें ये बताऊँ कैसे, 

मानती ही नहीं,

अब उन्हें ये समझाऊँ कैसे,


चार दिन का खाना

दो दिन में खिला देती है,

जैसा होकर घर से गया था ना,

वैसा ही फिर बना देती है।


जो इक पल में गुस्सा,

दूजे पल मुस्करा देती है,

कहती है गुस्से में कि

मुझसे बात मत करना,


वही माँ थोड़ी देर बाद

खाने के लिए कुछ खास बना देती है।

खैर ये बातें भी कुछ

अलग ही मजा देती है,


गर करो महसूस इन्हें,

हाँ थोड़ा भावुक भी बना देती है। 


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