● माँ ●
● माँ ●
एक शब्द "माँ"
जो अपने आप मे पूरा है,
यकीन मानिए,
बगैर उसके ये जहां अधूरा है,
ऐसा कुछ नहींं जो खो कर
मिला नहींं करता फिर,
मगर वो प्यार, वो फिक्र,
वो नाराजगी, वो देखभाल,
उस चेहरे पर झलकती मासूमियत,
उसकी गोद मे वो जन्नत का अहसास,
क्या दुबारा मुमकिन है ?
उम्र के उस पड़ाव में,
जहा वो होगी नहींं हाथ थामने को,
मन करेगा उससे बात करने को,
याद आ रहा होगा,
उसका अपने हाथों से बाल सवारना,
निवाला लेकर पीछे पीछे दौड़ना,
चोट खुद को लगना,
आंखों में आंसू उसे आ जाना,
अपने खातिर पूरा घर सिर पे उठा लेना,
पता नहींं क्या जादू है उसके हाथ मे,
हर दर्द में बस वही याद आती है,
पर ढल जाएगी वो उम्र जब,
बालो में हाथ फेरेगा कौन ?
हम पर क्या अच्छा लगता है क्या नहींं,
ये फिर अब हमें बताएगा कौन,
बैठे होंगे किसी कोने में दुबक कर जब,
हमें गले से लगाएगा कौन ?
हम अपनी बात फिर कहेंगे किस से,
हमारे खातिर फिर सोचेगा कौन,
कोन करेगा फिर तरफ़दारी हमारी,
हमारा मन फिर हल्का करेगा कौन ?
कभी कभी दिल सहम सा जाता है,
पता नहींं फिर बेरंग पड़ी अपनी दुनिया,
कैसे फिर से किसी चहक पाएगी,
क्या चाहिए दिल को ओर क्या नहींं,
किस को फिर बोल पाएगी,
वो अलग हो जाएगी हमसे एक दिन,
अहसास से उस मंजर के रोम रोम कांप जाता है,
नहींं रहता काबू फिर खुद पर चाह कर भी,
पानी आंखों से बह ही जाता है।
एक शब्द "माँ"
जो अपने आप मे पूरा है,
यकीन मानिए,
बगैर उसके ये जहां अधूरा है।