कायदा कलम वेड्स प्रिय पेपर
कायदा कलम वेड्स प्रिय पेपर
बड़ा एक दिन है ये,
जब दो दिल होंगे एक,
खुशियों के लिफ़ाफ़े तो,
पढ़ेंगे रिश्तेदार अनेक।
जब देखेगी पूरी दुनिया,
खुशियाँ हवा में उछलती हुई,
भाषाओं का उपहार,
और वाक्यों की वरमाला पहनाई गई।
शर्मीला दूल्हा अपनी बारात लेकर,
आर्मी ऑफ़िसर को लेने आया है,
स्वागत पत्र पर, माता-पिता ने,
'कायदा कलम वेड्स
प्रिय पेपर' लिखवाया है।
उतावले हो रहे है दूल्हे राजा,
अपनी सबसे घनिष्ट मित्र को
दुल्हन बनते देखेंगे जो
लेकिन शादी से पूर्व मुलाकात कर,
कैसे तोड़ती कायदे,
कायदा महोदया यो !
पंडित किताब जी हो रहे हैं
बहुत उतावले,
शायद कोई और विवाह भी
संपन्न करवाना है;
लेकिन माँ तो सजा रही है
कलम को आराम से,
अरे एक ही तो बेटी है !
जिसका विवाह आज धूम-धाम से मनाना है।
स्केचपेन और मार्कर्ज़ की
टोली कुछ खुसपुसा रही है,
शायद जीजाजी के जूतों पर है नज़र
लेकिन देको तो पेपर के भाई
कार्डबोर्ड और टिश्यू पेपर्ज़,
दबाकर खा रहे है गोल-गप्पे, बेख़बर।
लेकिन इस सब मेम तो हम भूल ही गए,
पेपर के दादा-दादी, वेद-पुराणों को,
कुछ ही समय में मित्र बन गए है,
कलम के नाना-नानी,
लकड़ी और स्याही से जो।
आखिर वो क्षण आ गया,
जब पेपर भरेगा कलम
की माँग रीफ़िल से,
और सात फेरे लेंगे ये,
दोनों ही लेखिका के।
फिर सब मीठे शब्द बरसाएँगे,
और करेंगे इनकी ख़ुशहाली की दुआ,
फिर अगले दिन इनकी
मदद से लिखेंगी लेखिका,
'कायदा कलम वेड्स प्रिय पेपर'
के महाविवाह की कथा।