ऐसा भी क्रोध
ऐसा भी क्रोध
ये दुनिया है शब्दों का जाला,
जिसमें से एक, छोटा-सा शब्द है क्रोध,
जो नहीं मानता मस्तिष्क की कोई बात,
सिर्फ़ करता है उसका विरोध।
ये क्रोध है एक ऐसी चीज़,
जो है बहुत खतरनाक,
होता है जब इसका आभास,
तो शरीर के भीतर
उभरने लगता है चक्रवाक।
ये है एक ऐसा धागा,
जो बदल सकता है
मनुष्य का चरित्र,
और बना सकता है उसे,
बिलकुल अपवित्र।
इसपर नियंत्रण करना
है अतिआवश्यक,
वरना गँवा सकते है अपनी जान,
साथ ही ले जाएगा ये अपने,
आपका समस्त मान-सम्मान।
ये धागा है ऐसा अनोखा,
जो नियंत्रण न करने पर,
हो सकता है इतना घातक,
कि घोट दे गला,
और नियंत्रण कर लेने पर
इतना सदुपयोगी,
कि बन जाए गले की माला।
क्रोध है एक छोटा-सा शब्द,
जिसने बड़े-बड़े युद्ध है करवाए,
महाभारत और रामायण जैसे प्रत्यक्ष,
हम सब से कैसे छिप जाए।
छोते बच्चों को यदि
क्रोधवश कुछ कहे,
तो समझते कुछ नहीं,
केवल सहम जाते हैं,
और प्यार से समझाने पर तो,
बड़े-बड़े मूर्ख भी समझ जाते हैं।
क्योंकि जब कोई क्रोधित व्यक्ति,
कुछ अनिष्ट करने जाता है,
एक प्रेम-भरा हाथ ही तो,
उसे रोककर,
सही राह दिखलाता है।
अतः क्रोध केवल मनुष्य को,
दुर्बल ही बनाता है,
और मात्र प्रेम की शक्ति से
उस पर नियंत्रण कर पाता है।