ज़िंदगी की दौड़
ज़िंदगी की दौड़
ओ परिंदे! मानो मेरी बात-
चलते जाना, ओ परिंदे!
मंज़िल है दूर;
लेकिन कभी न भूलना,
कि तू है एक नूर।
आँखें चमके स्वाभिमान से;
पर न हो अति गुरूर,
माँफ़ी माँग लेना तू,
अगर हो तेरा कुसूर।
करते रहना तू सबके साथ,
अच्छा सुरूर,
ज़िंदगी में कुछ छूट न जाए,
एक मर्तबा तू कर लेना हर चीज़ ज़रूर।
करे तू जो भी काम,
खयाल रखना, न भंग हो दस्तूर,
माफ़ कर देना हर उसे,
जो हो बेक़सूर।
चलते जाना, ओ परिंदे!
मंज़िल है दूर;
लेकिन कभी न भूलना,
कि तू है एक नूर;
लेकिन कभी न भूलना,
कि तू है एक नूर।