सिनेमाघर से
सिनेमाघर से
आओ चलो चलें हम मित्र
देखे आज नया चलचित्र
कैसे भूल गए तुम आज का वार
जब खुलते सिनेमाघर के द्वार
गोलगप्पे, खट्टी गोली कररहे हैं इंतज़ार
लंबी कतार में खड़ा,कबसे रहा हूं तुमको पुकार
आओ चलो चलें हम मित्र,देखे आज नया चलचित्र।।
बात है यह उस दशक की
जब यौवन जीवन कि निर्देशक थी
जब निकले सिनेमाघर से , असल दुनिया एक पहेली थी
लाली बिंदी संग केंपा की बोतल बंजात सहेली थी
कंघी से फेरे बाल, जेब लिए वही गुलाबी रुमाल
झांकू खिड़की से बार बार,कबसे रहा हूं तुमको पुकार
आओ चलो चलें हम मित्र देखे आज नया चलचित्र
रंगीन हो गए वह सफेद पर्दे
बदल गए ढंग और चाल
खाली हो गए सिनेमाघर, जबसे खुले हैं टेलीफोन के द्वार
दो रुपए की टिकट की पद्वी बढ़कर पहुंची आज हजार
शाहरुख की आंखों में डूबे चक्कर खाए दो बार
फिर भी याद करे यदि हम तो क्या दिन थे वोह यार
इंतज़ार में खड़ा हूं तुम्हारे,अब तो हवा होगया है मेरा इत्र
पुकार रहा हूं कबसे तुमको
आओ चलो चलें हम मित्र
देखे आज नया चल चित्र।।