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निशा परमार

Abstract Drama Thriller

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निशा परमार

Abstract Drama Thriller

वसुंधरा का गन्धर्व विवाह

वसुंधरा का गन्धर्व विवाह

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आज वसुंधरा की मांग सजी है सांझ के सिन्दूर से,

कैसा ये गन्धर्व विवाह है डूबते सूर्य से

दुल्हन तो छुपी है घूंघट में 

देखा नहीँ कि कौन है सहरे में

कोन घराती कोन बाराती 

दुल्हन तो है स्वप्नो के पहरे मेँ 


देहरी पुजी है छलकपट से 

छापे लगे है विश्वास घात के 

है अनविज्ञ वसुंधरा बिचारी 

समस्त नाट्य और स्वांग से 

कैसा ये गन्धर्व विवाह है डूबते सूर्य से 


फूलों से सजी धजी डोली  बीच अम्बर में खड़ी 

आरती उतारे दुल्हन की मुसकाती मन्दाकिनी 

ऐसी शोभित शुभ घड़ी में दुल्हन क्यूँ विचलित दिखी

व्याकुल अधीर पीर उठी वरमाला से

कैसा ये गन्धर्व विवाह है डूबते सूर्य से 


आज वसुंधरा घोर संदेह के घेरे में है 

क्यूँ नहीं देखा ये मेने कि कौन सहरे में है 

मैं तो बंधी थी सूर्य के संग परिणय सूत्र में 

फिर क्यूँ अन्धेरा पसरा है इस शून्य में 

सितारों की लडी टूटकर झडी चूनर से

कैसा ये गन्धर्व विवाह है डूबते सूर्य से 


जैसे हीँ चांद की चंद्रमोहन चांदनी बिखर गई 

वसुंधरा सोचे कि मेरे सूर्य की किरणें किधर गई 

खुल गई संदेह की परतें समझ के एक खटके से 

समझ गई अब वसुंधरा 

कि क्यूँ हुआ था मेरा गन्धर्व विवाह 

उस डूबते सूर्य से।


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