कविता की कला
कविता की कला
कोई गायाल समझता है
कोई शायर समझता है
कविता का सार तो
टूटे दिल वाला कलाकार समझता है
कहीं शब्दों की माला है
कहीं लफ़्ज़ों का मायाजाल है
कोई अल्फाज़ो को लिखता है
कोई किताबों की भाषा समझता है
कोई बिन कहे सब कुछ कह जाता है
कोई चीख़ कर भी आवाज़ न लगा पता है
कोई कविता सा छा जाता है
कोई ख़त सा संदूको में समाता है
कोई पुराने अख़बार सा रद्दी के भाव जाता है
कोई कालीदास सा ज्ञान का
सागर बन उभर आता है
हर कविता का सार कवि के
अंतर मन को दर्शाता है
मेरी इस कविता का श्रेय
मेरे पसंदीदा कवि कुमार
विश्वास जी को जाता है
सादर प्रणाम महान कवि को
जिनका हर शब्द मेरे दिल को छू जाता है।
