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Priya Charan

Abstract

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Priya Charan

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गुजरता लम्हा

गुजरता लम्हा

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गुजर रहे हैं लम्हे,

सिमट रहे हैं सपने

गुजर रहे हैं लम्हे मेरे हाथों से

बिखर रहे है सपने,


अपनी आँखों की बरसातों से

सिमट रहे हैं

हौसले नन्हे परिंदो के

छूट रहा है, अतीत पीछे,

भविष्य की चिंता सता रही है।

गुजर रहे है लम्हे ,सिमट रहे है सपने

गुजरा रहा है ,योवन

समय की सीमा अनन्त काल है

मगर बाकी है,

हौसलों की उड़ान

बाकी है अभी कुछ

बचे हुए लम्हों में जान


करना है अभी अपनी

मेहनत से कुछ कमाल

गुजरते लम्हों को चले थे पकड़ने

तितलियों की तरह रंग

हाथों में छूट गए हैं।


गुजर रहे है लम्हे,

सिमट रहे हैं सपने

शब्दो की सीमा अनन्त है

कविता की उड़ान का

खुला आसमान है

बीते हुए लम्हो में,

सीखने का प्रमाण है

आने वाले लम्हों


बाकी अभी भविष्य का विस्तार है

गुजर रहे हैं लम्हे सिमट रहे हैं सपने

सिमट रहे है सपने।


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