नारी शक्ति क्यों नहीं चाहिए
नारी शक्ति क्यों नहीं चाहिए
माँ चाहिए बेटी चाहिए बहू चहिए पत्नी भी चहिए
फिर नारी शक्ति क्यों नहीं चाहिए...
क्यों वो रस्मों रिवाजों में अकेली बंधी रहती हैं
सात फेरे मिल कर लिया फिर क्यों ब्याहता
होने का फ़र्ज़ अदा कर अकेली, ख़ामोशी से सहती रहती हैं
कसमें वादे हैं कुदरत ने दोनों के कन्धों पर बराबर डालें,
फिर क्यों कोई मर्द घर के काम में हाथ बढ़ाने से भागे,
क्यों उनकी शान घट जाती हैं...!
बहन चाहिए बेटी चाहिए गर्ल फ्रेंड भी चाहिए फिर क्यों नारी शक्ति नहीं चाहिए,
अभिमान है उन्हें मर्द होने का तो हम भी क्यों ना गुमान करे स्त्री होने का..।
नौ महीने अपने गर्भ में पालती है फिर उसे एक नया ख्वाब दिखा नन्हे से बच्चे को खूबसूरत दुनिया में लाती हैं..।
फिर भी अभिमान नहीं करती वो तो प्रकृति का समान करती हैं..।
एक मां का कर्तव्य निभाती हैं
फिर कही जा के वो स्त्री कहलाती हैं
फिर क्यों इन्हें मां की शक्ति नहीं चाहिए..!
क्यों उसे ख़ामोश करा दिया जाता हैं, अब भी नारी को कुछ लोग नारी नहीं,
सिर्फ़ दहलीज में अकेली बंधी रिवाजों को निभाने वाली अभिनेत्री समझा जाता हैं;
दहलीज के अंदर तक सिमट कर वो अपना वजूद खो देती हैं,
और वो ही लोग नारी को नारी शक्ति ना समझ सिर्फ़ पुरुष प्रधान तत्व समझते हैं
जिनकी वजह से वो सब सहती है।
स्त्री से जुड़े हर रिश्ता चाहिए
परंतु इन्हें स्त्री नहीं चाहिए
नारी शक्ति नारी का हौसला नहीं चाहिए क्यों...?
