साहित्यकार ऐसे नहीं जनमता है
साहित्यकार ऐसे नहीं जनमता है
जैसे कि बिना दूध को मथे हुए ,
कभी माखन तैयार नहीं होता ।
वैसे ही सद्जन का खुद का कोई,
निज स्वार्थ व्यवहार नहीं होता ।।
टीस ना होता जिगर में कोई ,
डंक मारती हुई सुई अंतस्तल में !
तो शायद इस दुनिया में कोई भी ,
इंसान साहित्यकार नहीं होता ।।
ढले आचरण में जब भावुक सा,
ये उर का दीपक जल जाएगा ।
अंधकार मय कीन्हि गलियारों में,
भूला पथिक भी सँभल जाएगा ।।
गूँज उठेंगे ज़ब कोयल के स्वर,
सूने मन के इस कानन उपवन में ,
भाव हृदय के बदल गये तो फिर ,
जीवन भी स्वयम् बदल जाएगा ।।
