मैं जिद्दी हूं
मैं जिद्दी हूं
क्या खोया और क्या पाया...
उसपर किताब लिखती हूं।
आगे चलकर क्या-क्या पाना है,
उसका भी मैं हिसाब रखती हूं।
भीड़ में ढिंढोरा नहीं पीटती पर,
खुदा तक अपनी बात रखती हूं।
पूछो आखिर कहां से आता है हौसला इतना?
जो अंधेरों में बनकर चिराग जलती हूं।
सच तो यह है कि फूल को निचोड़ कर
फेंकने की ताकत भी है मुझमें,
और कांटे बिछाकर नंगे पांव चलती हूं।
हां, चुभता है कांटा पांवों में अक्सर फिर भी,
घाव पर मैं खुद ही मरहम रगड़ती हूं।
बस यही तक है जिंदगी की दास्तान कि,
मैं अपनों से नहीं अपने आप से लड़ती हूं।
जिद्दी बहुत हूं मैं जो ठा
न लिया तो,
मुझे पीछे कोई हटा नहीं सकता ।
रख दिया हाथ अपने पसंदीदा चीज पर,
तो गुरूर है उसे कोई और पा नहीं सकता।
ये अलग बात है कि मैं पीछे हट जाऊं,
अगर मेरा स्वाभिमान घटता होगा।
आज भी मेरे दिए हुए सिंहासन पर,
कोई गैर अपना राज करता होगा।
मलाल नहीं करती मैं किस्मत पर,
झुक कर सब कुछ स्वीकार करती हूं।
जहां नहीं दिखता मुझे मेरे रब का वास्ता,
उसे मैं अपने आप इनकार करती हूं।
तो बस यही खूबी है मुझमें कि,
जिद से शुरू और जिद पर खत्म,
जिद से ही सारी कहानी जारी है।
जो हासिल किया सब जिद से ही किया है,
और अब एक नए जिद की बारी है।