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Dr Hoshiar Singh Yadav Writer

Action Others

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Dr Hoshiar Singh Yadav Writer

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बदलाव

बदलाव

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बदलाव प्रकृति का रूप, कहते आये भूप,

कभी सर्दी, कभी वर्षा, कभी खिलती धूप।

बसंत बहार जब आती,जगा देती मन प्रीत,

कभी दीवाली मनाते, कभी होली के गीत।।


फरवरी की सुबह, दिखला रही अपना रंग,

देख देख बहार को,मन में छिड़ी एक जंग।

योगा करे,सेहत बनाते,दौड़ लगेगी जोर से,

झूम रहे हैं मानव ऐसे,पी रखी हो जैसेे भंग।।


करती जब शृंगार वो, हर्षित करता मन घोर,

मन में उमंग जाग उठे, शाम हो या हो भोर,

ठुमक ठुमक जब चले, पायल करती है शोर,

प्रसन्न होती मन से, नाचे मन का सदा मोर।


कंगन, गहना पहनकर, पायल पैर सजाती,

बोरला सिर पर रखे, घुंघरू पैर में यूं बजती,

नहीं दृश्य ऐसा मिले, लाख कर लो प्रयास,

तन पर पहन आभूषण, स्वर्ण सम वो सजती।


नहीं रूप ऐसा मिले, मन को कर देता प्रसन्न,

देख देख विभोर हो, नाचे तन और जन मन,

पूनम सी वो चांदनी, करती अंगना में प्रकाश,

मन में वो उमंग भरे, दर्द का कर देती नाश।।



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