बेरंग होली
बेरंग होली
आज होली का त्योहार था
चहुं ओर रंगो का फुहार था,
लाल हरा नीला रंग जहां में छाया था
सहेलियों के साथ नाच गाना लगाया था।
अनगिनत रंगो से रंगी थी मैं ऐसे
रंगो की पूरी दुनिया हूं जैसे,
अचानक एक हाथ किसी का मेरी छाती पर आया
दूजे ने दबोच कर मुझे रंग लगाया,
एक भारी हथेली ने मेरी कलाई को पकड़ा
दो चार रंगीन चेहरों ने मेरे चेहरे को जकड़ा,
अताह कोशिशें की कि भाग जाऊं
राक्षस ने मुंह को दबायाताकि बोल ना पाऊं,
खींच कर खूंखार लोग मुझे किनारे ले गए
बेदर्द रंगो से रंगकर मुझे गिराने ले गए,
कुछ घंटो बाद मुझे गिरफ्त से आजाद किया
इस तरह इन रंगो से बर्बाद किया,
खून से लथपथ पड़ी हुई मैं
खुद को संभाला फिर खड़ी हुई मैंं।
लड़खड़ाते हुए चली जा रही थी
भयंकर दर्द से कराह रही थी,
सब कुछ गया बस स्वांस रह गई
मैं जीती जागती एक लाश रह गई,
अब डरती हूं हर रंग देख कर
किसी को अपने संग देख कर,
वो रंगीन चेहरे ख्वाबों में आते हैं
मेरे घाव को और बढ़ाते हैं,
सीने में ज्वाला जम गई है
ज़िन्दगी अब थम गई है,
बाद उसके कभी होली भायी नहीं
उससे भयंकर शाम कोई आई नहीं।