लाल इश्क़
लाल इश्क़
सुनो बहुत कुछ कहना है तुमसे,
मालूम भी है तुम्हें
जबसे मुझसे दूर हुए हो,
हर रोज़ मेरी "ख्वाबों" में आते हो
मुझे हौले से गुदगुदाते हो
खो जाती हूं तुम्हारे "आगोश" में
लेकिन तुम वहां भी "नखरे" दिखाते हो
स्वप्न में तुम्हारी आवाज़ जब सुनती हूं,
तो लगता है जैसे तुम सामने ही हो
पलकें उठाती हूं तो तुम "ओझल"
हो जाते हो
तुमसे गुस्सा, नाराज़गी एक तरफ
तुमसे बेतहाशा "मोहब्बत" एक तरफ
तुम्ही तुम मेरे "अजीज़" हो
तुम तो वाक़िफ़ हो इस बात से कि
तुम मेरे अंतर्मन के कितने "करीब" हो
जिस तरह मैं तुम्हारी "दीप्ति",
और तुम मेरा "चाँद" हो,
ताउम्र कायम ये "इत्तिहाद" हो
जबसे तुम मेरे "इंतिखाब" बने हो
तुम्हें पाने की "आज़" छाई रही
दरमियान हमारे कुछ पल की
कायम कम्बख़त जुदाई रही
अजीब "इत्तेफाक़" था हमारे प्रेम का,
एक दूसरे को पाने की
गुज़ारिश दोनों ने की,
अपने दामन को फैला कर
एक "इबादत" हमने भी की
जज़्बे का जुनून इस कदर
परवान चढ़ गया था
अंतर्मन का जज़्बात हर ओर "बयां" था,
अंततः "एक" होने कि ख्वाहिशें कुबूल हुईं
वीरानी ज़िन्दगी फिर से "नूर" हुई
ये मेरा "लाल" इश्क़
नहीं कोई "मलाल" इश्क़!!
(आगोश - आलिंगन,
इतिहाद - मित्रता
इंतिखाब - पसंद
आज़ - प्रचंड इच्छा )

