होली
होली
1 min
212
वो बचपन की होली की
बात ही कुछ और थी,
पीले, हरे रंगों की
सौगात ही कुछ और थी
मोहब्बत थी आँखों में,
इज़्ज़त थी जज्बातों में,
अपनों का थामे हाथ,
फिर करते थे रातों में
वो रंग बिरंगे चेहरों की
मुलाकात ही कुछ और थी
वो बचपन की होली की
बात ही कुछ और थी॥
चारों तरफ फैला करती थी
गुझियों की महक
कीचड़ में लिपटे हुए
बच्चों की चहक
किसी को चुपके से रंगने की
खयालात ही कुछ और थी
वो बचपन की होली की
बात ही कुछ और थी॥
फिर शाम को बन ठन के
सजना संवरना
अपनों से मिलकर उन्हें
बाहों में भरना
वो दिलो में सम्मान,
और मासूम चेहरे की
मुस्कुराहट ही कुछ और थी
वो बचपन की होली की
बात ही कुछ और थी॥