सावन के अंधे
सावन के अंधे
सावन के अंधे को हर पल
बस हरा नज़र ही आएगा।
षड्यंत्रों के जाल बिछे हैं
चुनो यहाँ आमाल बिछे हैं
कंकालों ने वार किया है
नुचे ज़िस्म के बाल बिछे हैं
छोड़ो भी अब भैंस के आगे
कोई कबतक बीन बजायेगा।
सावन के अंधे......
गधे शेर की खाल हैं पहने
शेर बिलों में लगे हैं रहने
जल में कछुओं को ही मगर भी
देखो राजा लगे हैं कहने
जले हैं जंगल,जल,जीवन पर
सब है कुशल मंगल गायेगा।
सावन के अंधे .....
पहले जी के जंजाल लिए
फिर एक घोड़े की नाल लिए
दुश्मन को डराने की ख़ातिर
ख़ुद कितने विषधर पाल लिए
आस्तीन में बैठा है पर
मालिक को ही डस जाएगा।
सावन के अंधे .....
प्रवृत्ति बढ़े जब दोहन की
आवश्यकता है संशोधन की
सब के मन की है सुनो जरा
कोई बात नहीं है उलझन की
पर सुनोगे कैसे कानों पर
मोटा पर्दा पड़ जाएगा।
सावन के अंधे .....
