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मोहित शर्मा ज़हन

Tragedy

3  

मोहित शर्मा ज़हन

Tragedy

भूखा अन्नदाता

भूखा अन्नदाता

1 min
387


जगह - अपनी पार्टी ऑफिस, बलरामपुर।

"सर जी, इस गाँव बंथरा के हर घर में

100-200 रुपये है बांटने,

अगर हम पंचो को अच्छी कीमत

देंगे तो गाँव वाले लगेंगे हमारे तलवे चाटने।"


जगह - किसान विष्णु का घर, बंथरा गांव।

विष्णु - "सोनू, जा गैया चरा ला....कुछ काम नहीं करता,

मुनिया जा पंसारी से सौदा ले आ,

और तू सोनू की माँ...कुछ लकडियाँ बीन ला।"


"घर मे अनाज का दाना तक नहीं,

और तुम्हारी नशे की लथ जगी,

हम सबको घर से बाहर भेजना तो बहाना है...

तुम्हें तो अपने यारो के साथ नशा जो चढ़ाना है !"


अपनों के तानो पर विष्णु ने ध्यान कहाँ दिया

उसको तो कोई और दुख था सता रहा

ढूँढो रे ढूँढो मेरा भाग कहाँ है ?

कर्ज़े मे डूबा मेरा सारा जहाँ है।


सूखे ये सूखे पत्ते कहते क्या है ?

कितने बरस बीते बदरा कहाँ है ?

बंजर ये धरती खुद को क्यों कहती माँ है ?

बच्चे तड़प रहे...ममता कहाँ है ?


हाय रे हाय मेरी किस्मत कहाँ है ?

घर मे मेरी बिटिया जवां है !

जीवन ये मेरा कोई जंगल घना है,

कोई बताये मुझे राह कहाँ है ?


दल-बल के साथ 'अपनी पार्टी'

विष्णु किसान के घर से अपना

अभियान शुरू करने चली,

पर विष्णु के घर के बाहर उन्हें बिलखती भीड़...

और अन्दर एक मजबूर किसान

की लाश लटकती मिली।


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