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Dr.Purnima Rai

Tragedy

5.0  

Dr.Purnima Rai

Tragedy

मंज़र

मंज़र

1 min
373


मानवीय संवेदना को

लगा गहन झटका

जब किसी मानव ने नहीं 

वरन्

प्रदूषण के जहरीले नाग ने


समाॅग का रूप धारण करके

डंस लिया

कुदरती फाॅग को

बंद कर दिया है मानव को

खुद के बनाये किवाड़ों में 


बीमारी से लड़ पाने में असमर्थ

रोगी की मानिंद 

सिर्फ देख रहा 

तमाशा स्वयं का !


हो रहा हनन 

फिर से निजता के अधिकार का

घूमना चलना फिरना

टहलना दौड़ना

थम सा गया


जीवित तो है

पर रुकी हुई हैं सांसें 

खौफ का साया

प्रतिपल चल रहा है साथ !


दर्द का भयावह मंज़र 

नित्य देखती हैं आंखें 

मांस के लोथड़े

वृक्षों से गिरते पत्तों जैसे

बिखरे हैं इधर-उधर !


एक आह एक हाय

निकलती है बस

फिर जिंदगी चलने लगती

मरे हुये जीवित लोगों की !


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