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Aman Barnwal

Abstract Romance

4  

Aman Barnwal

Abstract Romance

सोचो कि अगर ये सफर आखिरी हो

सोचो कि अगर ये सफर आखिरी हो

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सोचो कि अगर ये सफर आखिरी हो

खुदा का अगर ये कहर आखिरी हो।  


जिसमें बसा रखी है हमने ये दुनिया 

सोचो कि अगर ये मंजर आखिरी हो।


तो क्या चाहत होगी इस लम्हें में तुम्हारी

मेरी बाहों में रहोगी या करोगी कोई सवारी।


मुस्कुराएंगी तुम्हारी आंखें मेरी आंखे देख कर

या अभिलाषाएं सारी रोएंगी तुम्हारी।  


मैं तो सो जाऊंगा तुम्हारे जुल्फो के नीचे

ग़म को छोड़ आऊंगा कहीं दूर पीछे।


पकड़ कर रखूंगा दामन तुम्हारा 

चाहे कयामत कितना भी मुझे खीचें।


सारे सपने और सारे ख्वाब भूल कर

तुझे देखता रहूंगा जैसे ये नजर आखिरी हो।


जिसमे बसा रखी है हमने ये दुनिया  

सोचो कि अगर ये मंजर आखिरी हो।


हो सकता है कल हम ना हो

ना ही हमारा किस्सा हो। 


नई नई जो दुनिया फिर बसे

उसमे ना हमारा हिस्सा हो।


फिर कोई तो होगा जो किसी से बेवजह प्यार करेगा

फिर कोई तो होगी जिस परवो दिल ओ जान से मरेगा।


क्या तुम पहचान पाओगी  

मेरी वो आवाज जो तुमने

पहली बार फोन पर सुनी थी।


क्या तुम पहचान पाओगी

ख़्वाबों की वो चादरें जो तुमने।

कभी मेरे साथ बुनी थी

क्या उस आखिरी वक़्त में ।


तुम्हें मेरी मोहब्बत याद रहेगी

क्या मेरी तरह तुम्हारे लबो पर भी।


फिर मिल पाने की फरयाद रहेगी।

क्या तुम तब भी मेरे इर्द गिर्द घुमोगी।


चाहे सपनों का ये शहर आखिरी हो।

जिसमे बसा रखी है हमने ये दुनिया।  


सोचो कि अगर ये मंजर आखिरी हो

कल ही मिले थे ना औरकल कयामत होने को है।


वो सारे ख्वाब जो साथ देखे, अब सारे खोने को है

शिकायत रहेगी कि ये जिंदगी बहुत ही छोटी निकली।


पता नहीं ये भाग्य का लिखा था

या अपनी ही किस्मत खोटी निकली 

पर चलो अब ये वादा करते है।


आज फिर से प्यार का इरादा करते हैं

लगाते हैं गोते ऐसे मोहब्बत की लहरों में।


मानो समुन्द्र की ये लहर आखिरी हो  

जिसमें बसा रखी है हमने ये दुनिया  

सोचो कि अगर ये मंजर आखिरी हो।


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