हुनर जानती है मेरी मां
हुनर जानती है मेरी मां
मौका ढूंढ़ती है डांटने का,
छिपे दर्द को बांटने का,
हुनर जानती है मेरी मां,
जख्मों को भी टांकने का।
हर निवाले को आखिरी
निवाला कहकर पीछे भागने का।
मुझको नींद की थपकी देकर
रात रात भर जागने का।
इधर उधर की बात बना कर
दिल के अंदर झांकने का
हुनर जानती है मेरी मां,
जख्मों को भी टांकने का।
खुद के पैरो में भरोसा कर
हाथ छुड़ा कर चलने का
घर परिवार बाज़ार दुकान
हर हालातो में ढलने का
बेईमानी की महल में नहीं
ईमान की राह पर चलने का
हुनर जानती है मेरी मां,
कतरन की चादर सिलने का।
सबको ले कर चलती है
आदत नहीं है छांटने का।
हर गलती के गढढों को
माफी दे कर पाटने का।
गलत बात किसी अपने की
निष्पक्ष हो कर काटने का
हुनर जानती है मेरी मां
फटी आबरू भी साटने का।
हाथ थाम कर बीच राह में,
होने का एहसास दिलाने का।
भूखी रह कर मौके गर मौके,
कुछ ना कुछ खिलाने का,
सपनों के पीछे नहीं भाग कर
हकीकत से आंख मिलाने का,
हुनर जानती है मेरी मां,
विष पीना भी सिखाने का।
गलती कितनी भी छोटी हो
उसका एहसास कराने का
और गलती करने से पहले
आंख दिखा कर डराने का
हार सहना सिखाने के लिए
जीत पर भी हारा बताने का
हुनर जानती है मेरी मां।
आदमी को इंसान बनाने का।
गलती हो जाने पर खुद से
खुद को भी गलत बताने का
दूसरों की गलती के जैसे ही
खुद की गलती दिखलाने का
सारी गलती दिखा दिखा कर
सबको सही सिखाने का
हुनर जानती है मेरी मां
मन को भी सुधार पाने का।
गर्व है मेरे रोम रोम को
उसका बेटा कहलाने का।
जंग है जीवन ताउम्र जिसका
खेल नहीं मन बहलाने का।
काश गर्व हो मेरी मां को भी
मेरी मां कहलाने का।
हुनर जानती है मेरी मां
डांट कर प्यार छिपाने का।