आलस या बेबसी ?
आलस या बेबसी ?
रोज जागते है पर आंखे नहीं खुलती।
लाख कोशिशों पर भी राखें नहीं घुलती।
इंसान दौड़ता है रोज, साहस से ज्यादा
पर हार फिर भी क्यूं पीछे नहीं छूटती।
ख्वाहिशें बड़ी बेशर्म है, मिटती नहीं है।
पूरी करने में हमारे हौसले बिक जाते है।
तलाशते है पंछी ना जाने क्या आसमान में
जिनके ख़ातिर उनके घोंसले बिक जाते है।
कोई रोके कभी तो हम रुकते भी नहीं,
श्रद्धा से कभी हमारे सर झुकते भी नहीं।
हम जलते है भास्कर की तरह दिन भर पर
अगले दिन फिर रोशनी ले कर उगते भी नहीं।
हम चाहे तो हर लम्हें में निखर सकते है।
जो चाहे वो मेहनत से हासिल कर सकते है।
उम्मीदों की लौ जला कर अपने सीने में
रोशन ये सारा जहान कर सकते है।
हौसलों के पंख लगा कर सपनों को
भ्रमण ये सारा आसमान कर सकते है।