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VIVEK ROUSHAN

Abstract

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VIVEK ROUSHAN

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जिंदगी की धूप

जिंदगी की धूप

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राह पर चलते हुए

धूप में जलते हुए

मैंने ये महसूस किया है की

जिंदगी की

धूप से बड़ी कोई धूप नहीं


क्यूँकि इस धूप के मद्धम होने

का हम सिर्फ इंतज़ार कर सकते हैं

निश्चिन्त नहीं हो सकते की

शाम होते हीं सूरज ढल जाएगा।


धूप से राहत मिलेगी

सांय का छाया मीलेगा

रात को अपने आलिंगन में भरकर

हम चैन से सो जाएंगे 

फिर सूरज को खिलता देखेंगे।


भोर को हँसता देखेंगे

और हम अपना 

सारा का सारा 

दुख भूल जाएंगे।


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