ग़ज़ल
ग़ज़ल
पाबागुल हो तो रिहाई की ज़रूरत क्या है ?
सुरूरे इश्क़ में हूँ , ताज़-ओ-हुक़ूमत क्या है।
ज़ुर्म खुद उसका ही, मुंसिफ भी वही है यारो
फैसले पर ,कयासों की ज़रूरत क्या है।
अय मेरी ज़िंदगी मुझपे मेहरबाँ हो जा -
जानूँ तुझको तू कौन है,औ'हक़ीक़त क्या है।
मन से दीवाना है पागल है सिरफिरा भी है
ऐसी औलाद है तो - वसीयत क्या है ?
हरेक जेहन में बारूद ज़हरीली ज़ुबाँ-
ऐसे माहौल में नसीहत ? नसीहत क्या है ?
पट्टियां बांध निकल घोड़ों की तरह
खतरों को देखने की जरूरत क्या है ?
