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Girish Billore

Abstract

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Girish Billore

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ग़ज़ल

ग़ज़ल

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पाबागुल हो तो रिहाई की ज़रूरत क्या है ?

सुरूरे इश्क़ में हूँ , ताज़-ओ-हुक़ूमत क्या है।


ज़ुर्म खुद उसका ही, मुंसिफ भी वही है यारो 

फैसले पर ,कयासों की ज़रूरत क्या है।


अय मेरी ज़िंदगी मुझपे मेहरबाँ हो जा -

जानूँ तुझको तू कौन है,औ'हक़ीक़त क्या है।


मन से दीवाना है पागल है सिरफिरा भी है

ऐसी औलाद है तो - वसीयत क्या है ?


हरेक जेहन में बारूद ज़हरीली ज़ुबाँ-

ऐसे माहौल में नसीहत ? नसीहत क्या है ?


पट्टियां बांध निकल घोड़ों की तरह

खतरों को देखने की जरूरत क्या है ?


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