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Renu kumari

Abstract

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Renu kumari

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एक कविता ऐसी भी

एक कविता ऐसी भी

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मैं अंजान हूँ उन नियमों से जो कविता लिखने के होते हैं

नही जानती कविता के कोई रस भी ऐसे होते हैं

मैं लिखती हुँ बेफ़िक्र हो जज़्बात जो मन में होते हैं

शब्द लिखे उन पन्नों पे क्या नियमों से बंदे होते हैं

मुझे छंद अलंकार का ज्ञान नही क्या कुछ ऐसे भी लय होते हैं

मैं हृदय की वाणी लिखती हु जो वास्तविकता से परे होते है

लोग कविताएं सुन मेरी मुझे प्रेम रस की कवयित्री कहते हैं

कोई समझाएं मुझे की प्रेम रस में भाव भी कैसे होते हैं

बनावटी भावनाओ का मुझे अनुमान नही वो व्यख्यान कैसे होते है

अंजान हूँ मैं उन मशहूर हस्तियों से जो सहित्य की रचना करते हैं

ना जाने कौन से सागर से कविताओं के मोती लाते हैं

मैं अंजान हूँ उन नियमों से जो कविता लिखने के होते हैं

नही जानती कविता के कोई रस भी ऐसे होते हैं।



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