लग जा गले...
लग जा गले...
लग जा गले के फिर ये हँसी रात हो ना हो
एक ही गाना एक ही जगह पर
सुना हैं मैंने दो अलग आवाजों मेंदो अलग इंसानों से
ये इत्तेफाक था या साजिश कोई वक्त की
पर मैं दोनों बार सुनती ही चली गयी
चुपचाप बैठे रहीं थी दोनों बार भी इसे सुनकर
दोनों बार एक ही सवाल उभर आया था सामने के,
"तुम चुप क्यूँ हो गयी
पहली दफा भर लेना चाहती थी इस गीत को अपने अंदर
तो चुपचाप सुनती रहीं
दुसरी दफा भाग जाना चाहती थी इस गीत से
तो फिर चुपचाप सुनती रही
कैसे कह सकती थी दुसरी दफा के मत आ मेरे सामने,
पहली बार जब तुम्हें सुना था वो कोई और था
आज कोई और हैं
कैसे तोड़ देती पहली दफा से नाराज होकर
दुसरी दफा का दिल
सो सुनती रहीं अंजान बनकर संग गुनगुनाती रहीं
पास तो चाहती हूँ पर ना जाने
अब की रात की उम्र कितनी हैं
बस इंतजार इस रात से पहले
अपनी साँसों के टूट जाने का
क्यूँ कि, पहली आवाज मेरे लिए क्या हैं नहीं जानती
पर दुसरी आवाज सिर्फ मेरी हैं
नहीं खो सकती नहीं खोना चाहती कभी
इस लिए खामोश ही रहीं।
