अनोखा रिश्ता
अनोखा रिश्ता
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क्या अनोखा रिश्ता है इन भाई बहनो का
क्या खूबसूरत नजारा है आज के इस शाम का
ना जान मैं इन्हे ना जाने यह मुझे
फिर भी दिल को छू जाने का
समंदर की लेहरो में झिलमिल करते तारों की तरह हस रहे हैं यह
दुनिया की सच्चाई से अंजान अपनी मासूमियत को कर रहे हैं सब पर मेहेरबान
किसी से कुछ गिले शिकवे नहीं बस खुद मैं ही है अंजान
सिर्फ एक दूसरे की फिक्र और ना है किसी और बात का डर
साथ रहे हमेशा यह चारो इस तरह संग
भरते रहे इसी प्रकार एक दूसरे के जीवन में रंग
रहे सदा जीती इनकी यह मासूमियत
नजर ना लगे इनके रिश्ते को यही हैं अब बस फिक्र.....