तब ही सार्थक होली -दिवाली
तब ही सार्थक होली -दिवाली
निज चमन के बनेंगे जब हम माली,
होगी सार्थक तब ही होली-दिवाली।
समझिए यूं खुशहाली का मूल राज,
शून्य निज अस्तित्व है बिन समाज।
ग़म बंटाने से ही घटते हम सभी के,
बांटने से होतीं सब खुशियां निराली।
निज चमन के बनेंगे जब हम माली,
होगी सार्थक तब ही होली-दिवाली।
हमने जो कमाया है मेहनत लगा के,
कमा सकते थे क्या जंगल में जा के?
समाज का ही है जो अर्जित किया है,
परहित की भावना सबसे ही आली।
निज चमन के बनेंगे जब हम माली,
होगी सार्थक तब ही होली-दिवाली।
प्यार ही में देव सब हमको मिलेंगे,
जो आलोक हित दीप से हम जलेंगे।
प्रकृति के सम भेद न जब हम करेंगे,
आए स्वर्णिम प्रभा जाए रजनी काली।
निज चमन के बनेंगे जब हम माली,
होगी सार्थक तब ही होली-दिवाली।