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SMRITI SHIKHHA

Romance

3  

SMRITI SHIKHHA

Romance

तेरे जाने के बाद

तेरे जाने के बाद

3 mins
122


तेरे जानें के बाद रहे गई मैं अधूरी जब किया था वादा देने ज़िंदगी भर का साथ पूरी फिर भी हो गए दोनो के मंजिल अलग जब होना था साथ


फिर क्यों छोड़ गया बीच रास्ते बीच चौराहे पर बिना मतलब बेवजह के मेरा हाथ थे जब हम सालों के लिए रेहेने वाले साथ थे लेके हाथों में हाथ


बिना ये बताए क्या थी मेरी गलती क्यों तू छोड़ गया मुझे अंधेरे में अकेला जब किया था वादा हर हालाद में थामने का हाथ 


ज़िंदगी है तो हम दोनो की बाकी पूरी मगर मैं क्यों रेहे जाऊं पीछे अकेले जब तू बढ़ जाए आगे किसी और के साथ ।


क्या होता सिर्फ हमारे साथ ऐसा या थी मैं ऊपरवाले के लिए कोई खास की कर दिया मुझे अकेला बिना मेरे प्यार का होना मेरे पास 


चला वो गया दिल तोड़ कर मेरा बिना ये बताए क्या थी मेरी गलती आखिर या फिर थी मुझमें कोई कमी जिसका वो करवाना चाहता था मुझको एहसास 


जब चलते थे रास्ते पर एक साथ लिए हाथों में अपने एक दूसरे के हाथ केहेते वो बाहर के लोग थे की रहेंगे हम ज़िंदगी भर साथ साथ 


में पूछती हूं क्या लग गई रिश्ते को हम दोनो की उन बाहरवालों की नज़र जो कभी दिखलाते थे हमे साथ में देख कर अपनी खुशी जो देख कर मुझे आज अकेले जताते हैं अपने अफसोस ।


बचपन से लेकर हाई स्कूल तक थी मैं अकेली, प्यार होता है क्या बताया ये मुझे तुमने था सीखाया भी जताया भी उसका तुमहिने मुझको एहसास 


जब थे सब जोड़ी बने नए नए थी मैं तब सातवी कक्षा में जब आया मुझे समझ में प्यार और आकर्षण में फर्क 


देख कर उन जोड़ियों को जिसमे लड़की कभी किसी और की आशिक और आशिकी हुवा करती थी आज वो हो किसी और की गई है 


आता था मन में ये खयाल की जो दो साल पेहेले हुवा करता था उसका आशिक जिससे वो करती प्यार मोहब्बत की बातें क्या वाकई उससे कोई प्यार था उससे क्या कभी हुवा करता था वो उसके ज़िंदगी का एहेम हिस्सा ।


वक्त चलता गया पहुंच गई मैं दसवी कक्षा में जहां थे वो सारे जोड़ियां अपने अपने जोड़ीदार के लेकर सातवी कक्षा से उनके हाथ


मन में आते थे मेरे ये सवाल की क्या कभी होंगे ये अलग जो रेहे ना सके दो पल के लिए बिना एक दूसरे के 


क्या होगा अगर कभी हो वो जाएंगे गलती से भी किसी गलत फेमी से एक दूसरे से अलग क्या रेहे वो पाएंगे बिना एक दूसरे के अपने ज़िंदगी में खुश 


देखते हीं देखते बीतता समय गया आ गया हम हमारे दसवी बोर्ड्स परीक्षा के पास तब हो थे कईं सारे जोड़ियों के रास्ते अलग बेहे कईं के बहुत सारे आंसू और कोई थे उनमें जो बढ़ गए थे बड़ी जल्दी ज़िंदगी में बहुत आगे और थे कोई साथ साथ जो छोड़े परीक्षा के बाद एक दूसरे के हाथ ।


मिले मुझे तुम थे दसवी के बाद सोचती मैं तब थी अच्छा हुवा मिले नही मुझे दसवी से पेहेले क्या पता बाकियों के तरह छूट गया होता हम दोनो का भी साथ जो थे नजाने कितने सालों से एक जो जोड़ी लगते थे कभी हमे शिव और पार्वती की जोड़ी जो हुवा करते थे सबके लिए आदर्श युगल 


जिसका रिश्ता चला सबसे लंबा था और था जिस रिश्ते में भर भर कर निष्ठा क्या था उस लड़की को देगा उसका प्यार उससे इतना बड़ा धोखा की छोड़ कर उसे चाह ने वो लगेगा किसी दूसरे को 


उम्मीद में भी कभी करती थी की हैं हम बने हमेशा के लिए ज़िंदगी भर के साथी मगर जो तुम छोड़ गए अकेले याद है आता मुझे अपना बचपन जो देख कर करती हूं अपने बीते हुवे कल को याद


 की हो गई थी शायद इंसान परखने में या सही गलत चुनने में मुझसे कोई गलती की कर न पाऊं मैं किसी और पे आज भरोसा तुम्हारे जाने के बाद देने के बाद मुझे धोखा ।



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