इश्क में
इश्क में
एक दिन मौसम खुश मिजाज था
हमको भी चढ़ा इश्क का बुखार था
सोंचा आज इजहार करके देखा जाये
चलो कोई से प्यार करके देखा जाये
पहनकर सूट-बूट, लगाकर गले में टाई
कुछ इत्र तो कुछ डियो भी ऊपर छिडकाई
आँखों में चश्मा पहना हाँथ में मोबाईल था
आज तो अपना भी एक अलग इस्टाइल था
ख़ुशी ख़ुशी हम भी पहुंचे एक पार्क में
लगे ताड़ने हसीनों को अपनी वाली की ताक में
कोई भी खाली समझ ना आई
थी सब अपने वाले के साथ में आई
लगे सोंचने इन सब का सत्यानास हो
अब तो हम कन्फ्यूजन में थे, फिर भी
दिल को समझाया ये तो अभी सुरुआत है
जो यहाँ नहीं मिली कोई फुलझड़ी
कहीं और जा कर ट्राई करी
निकल रंगीन झुरमुटों से पहुंचा
एक शांत सरोवर के किनारे
कुछ दूर पर बैठी एक बियूटी देखी
मन में खुशियों का ख्याल आया
दिल में गुदगुदी तो चेरे पे हँसी फूटी
झट से हम पहुंचे सुंदर बाला के पास, और
दे डाला खुद का परिचय अलग ही अंदाज में
हम हैं फतेहपुरिहा, शहर में ही हमरो निवास है
लिखे पढ़ें जो बात करो हम भी मैट्रिक पास हूँ
गवर्नमेंट नौकरिया हमको देबो नाही
फिर भी सारा दिन नहीं खाली हूँ
अपना भी छोटा मोटा धंधा, मेहनत का पंगा है
मेहनत करके जरूरत का गुजरा हो जाता है
हाँ वक्त बहुत है मेरे पास अपनों के खातिर
क्या तुम भी अपना वक़्त बिताना चाहोगे मेरे साथ
हर पल का साथ निभाना चाहोगे मेरे साथ
कुछ इस तरह से ..........
बिना पल गवाए हमारे प्यार का इजहार हो गया
वो कुछ कह पाते इससे पहले की
उनकी खामोशी देख हमारा दिल बाग बाग हो गया
मन में इकरार के लड्डू फूट पड़े
हाय रे हमारी किश्मत
प्यार का इजहार करते ये किस्सा सरेआम हुआ
दिल में बसी इश्क की खुमारी
चार मिनट में ही उतर गई
दिल का दिवाला यूँ निकाला गया
धोबी जैसे धोये कपड़े, वैसे ही पछाड़ा गया
कुछ लोगों ने मिलकर मंदिर की घंटी स बजाया
लात घूसों की मशीन में, मैं फटेहाल हो गया
मेरे शरीर के हर अंग बेहाल हो गए
पर मन में एक सवाल अब भी बाँकी था
हिम्मत जुटा कर सवाल करने की इजाजत माँगी
इजाजत मिलने पर भीड़ से वार्तालाप कुछ यूं हुई
माना के पढ़ा लिखा कम हूँ
दिखने में सुंदर भी बहुत कम हूँ
रुपया पैसा कम है कमाता भी कम हूँ
माना के मेरा यूँ इजहार करना गलत था
पर मानवता के नाते जो आपने किया
क्या इंसानियत का यही धरम था
मेरे शब्दों मेरे बर्ताव में क्या कमी थी
जो इस तरह यूँ लाचार कर दिया
कूट पीट व घसीट कर फटेहाल कर दिया
इतने में उस सुंदर कन्या ने इंट्री मारी और बोली
मैं जब पार्क घूमने को आई थी
सुनने वाली मसीन घर भूल के आई थी
आप जो हमसे कह रहे थे सुन न पाई
जब तक आपकी बात समझ पाती
पता नहीं क्या तमाशा हो गया
अब मैं कान की मशीन लेकर आई हूँ
आप फिर से अपनी बात सुरु करो
ये सुनकर मेरा दिमाग चक्कर खा गया
कभी लड़की को देखूँ तो कभी भीड़ को
पर सोच न पा रहा था कि क्या बोलूँ
तभी उसने फिर से सवाल दोहराया
मैंने हाथ जोड़ दिए सभी के सामने और बोला
एक बार कहा तो कुछ ऐसा धमाल हो गया
के जन्म भर इश्क का इजहार न कर सकूँगा
कोई आकर इजहार भी करे तो हाँ न करूँगा।