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एम एस अजनबी

Romance

4  

एम एस अजनबी

Romance

रातों को जाग कर

रातों को जाग कर

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जो निकले थे गुमान में प्यार का वो दामन छोड़ कर

यादों के गिर्दाब में क्यों है गुमसुम, रातों को जाग कर


जो सोते थे चैन से रात भर, औरों करके बेचैन

आज कल वो काटते हैं रातें, रातों को जाग कर


ग़ैरत में ग़ौर न किया जो ग़ालिब को अजनबी समझ

अब न कर ज़र्ब को यूँ ज़ाकिर तू, रातों को जाग कर


गर जज़्ब की वो चितवन न सजाते इश्क के दरमियाँ

तो तबस्सुम को न खोजते ज़हीर, रातों को जाग कर


क़ामिल में बन गया है वो कातिब खुद के मुकद्दर का

देने लगा है खुद क़ल्ब को सजा, रातों को जाग कर


अगर जो तू करता हिफाजत खुद के पैमान की

यूँ नासबूर न होती तेरी रातें, रातों को जाग कर


ये नूर चाहे कितना भी फैला हो तेरी नाज़िश का

क़रार नहीं क़ल्ब को यूँ मिलता, रातों को जागकर


उन्हें किस बात का है गुमान, ऐ फ़िदाई "अजनबी" 

गर क़फ़स क़ायल है क़ल्ब से, रातों को जाग कर।


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