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प्रेम

प्रेम

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प्रेम क्या होता है नहीं जानता

पर प्रेम करता तो हूँ तुमसे।

कहता नहीं कभी, दिखाता नहीं कभी

पर प्रेम तो बहुत करता हूँ तुमसे।

और यह तुम भी जानती हो

बस मानती नहीं हो।


जब हर सुबह अलार्म बजने से पहले

उसे बंद करता हूँ।

फिर तुम्हारे बालों को सहला कर

तुम्हें  उठाता हूँ यह कहकर कि

ऐश कर रही हो तुम मेरे राज में

वो प्रेम ही होता है मेरा।

और तुम भी जानती हो

तभी प्यार से उठकर

पूछती हो क्या खिलाऊँ आज।


जब तुम्हारे बनाये खाने को

मीन मेख निकाले बिना निगल लेता हूँ।

जब तुम्हारे पूछने पर भी

सिर्फ हम्म में जवाब देता हूँ।

पर तुम जानती हो,

रिश्तेदारों के यहाँ जाकर भी

तुम्हारे हाथ का बना मांगता हूं।

वह प्रेम ही तो होता है मेरा

और तुम भी जानती हो।

तभी मुस्कुराकर चुपचाप

मेरे फुल्के सेंक

 देती हो धीमी आँच पर।


कभी तुम्हारी आँखें

पढ़कर समझ जाता हूँ

उनमें छुपे आँसुओं की वजह,

कभी तुम्हारी मुस्कान देखते ही

मेरा हृदय खिल उठता है।

कभी तुम्हारे

गले में बाहें डालने के अंदाज़ से

समझ जाता हूँ क्या है हाल ए दिल।

तो कभी ज़ोर से तुम्हारा

मुझे चुटकी काटना

बता देता है कि तुम

नाराज़ हो पर रूठी नहीं 

और तुम भी जानती हो कि

हम चुपचाप कनखियों से

एक दूसरे के भाव पढ़ लेते हैं।


प्रेम तो बहुत करता हूँ तुमसे

जब तुम्हारे बिना कहे जान लेता हूँ

आज कुछ खट्टा,

आज कुछ मीठा खाने का मन है तुम्हारा।

तुम जब बीमार पड़ती हो

तो दुनिया का हर काम

मुझे बौना लगता है,

तुम्हारे पास न रहने से

जीवन सूना लगता है।


यही तो प्रेम है।

जिसे कहता नहीं 

दिखाता नहीं 

पर करता तो बहुत हूँ।

और यह तुम भी जानती हो।

बस फर्क इतना है कि

मानती नहीं  हो।



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