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Bharti Ankush Sharma

Abstract

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Bharti Ankush Sharma

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माँ

माँ

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माँ और ये जो डेढ़ अक्षर का शब्द है

जीवन का यही प्रारब्ध है।

ये याद रखना नहीं पड़ता

किसी मिलावट का इसपे कभी रंग नहीं चढ़ता।


कुछ अजूबा देख लो तो उछल कर मम्मा चिल्लाना।

छींक भी आई तो मुँह से आ छी माँ निकल जाना।

दर्द में भी माँ माँ कराहना।

कुछ गड़बड़ हो जाए तो (बचा ले) माँ पुकारना !


जिंदगी की छोटी सी कठिनाई,

और सबसे पहले माँ याद आयी।

थक गई आत्मा या हो रही रुसवाई,

माँ के आँचल तले, उनकी गोद में ही छाया पायी।


कभी राह भटके तो माँ की सीख कदम रोकती है,

कभी अपने आँचल से वो बच्चों के आँसू पोंछती है।

कभी भूख से ज्यादा खाना परोसती है।

कभी बच्चों की गलतियों के लिए भी खुद को कोसती है।


कभी सर्वस्व लुटा कर उसका वो मुस्कुराना याद आता है

घर की सबसे छोटी कटोरी में उसका खाना याद आता है।

कभी याद आता है चुपके से उसका अपनी तकलीफ़ें छुपाना

कभी उसके नेह में बीता जमाना याद आता है।


जननी होना जीवन का सबसे महान काम है

माँ, आयी, माई, मम्मी कितने भी ले लो नाम है।

स्त्री के इस ईश्वर रूप को सलाम है

हर माँ को मेरा साक्षात दण्डवत प्रणाम है।


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