वक़्त
वक़्त
देखो न वक़्त वक़्त की बात है।
कल मैं कमज़ोर थी,
सच्ची होकर भी बेबस लाचार थी।
करवट बदली थी किस्मत ने
और वक़्त तुम्हारा था।
मैं चीखती रही, चिल्लाती रही
पर कोई सुनने वाला न था।
उस मोड़ पर बिखरी थी,
जिसका कोई किनारा न था।
लड़कर भी हारी थी सच्चाई,
क्योंकि वक़्त तुम्हारा था।
मगर जान लो इतना, कि ये वक़्त वक़्त की बात है।
अब बदल रहा है वक़्त,
हवा का रुख भी ले रहा है करवट,
मैं आज भी वहीं खड़ी हूँ।
सच्चाई के पथ पर अडिग सी,
मुड़कर देखना जैसे कड़वी दवा को चबाने सा एहसास है
पर हर बार एक ज़ख्म पर मलहम लगा ही आती हूँ।
ये वक़्त वक़्त की बात है।
मैं आज भी कमज़ोर हूँ,
मगर उबर कर अपने दर्द से लड़ना सीख गई हूँ मैं।
हार कर बिखरना नहीं, निखरना सीख गई हूँ मैं।
कलम में दिल के लहू की स्याही डाल,
इतिहास बदलना सीख गई हूँ मैं।
आखिर ये वक़्त वक़्त की बात है।
कल तक जो संग था तेरे,
वो जल्दी ही मेरा होगा।
वो रोशनी की किरण ढूँढेगा जब चारों ओर अंधेरा होगा।
मेरी तरह तन्हाइयों में फिर तेरा भी बसेरा होगा।
कल तक मेरी अंधेरी रात थी, अब सवेरा होगा।
क्योंकि ये तो वक़्त वक़्त की बात है।
कल तक ये वक़्त तेरा था,
अब यकीन है एक दिन मेरा होगा।