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Anju Agarwal

Romance

3.3  

Anju Agarwal

Romance

मैने कहा ...

मैने कहा ...

1 min
373



मैंने कहा-पृथ्वी हूं मैं!

और तुम मेरे सूरज!

तुम्हारे चारों ओर घूमने में ही मेरी सार्थकता है!

तुमने कहा-

नही! 

नहीं बनना मुझे सूरज!

नहीं चाहता मैं

घुमाना तुम्हें...

अपने इर्द- गिर्द 

तुम नृत्य करो स्वयं

अपने ठहराव बिंदु पर..

मैं निहारूंगा तुम्हें चांद से..

अप्रतिम!

मैंने कहा-मैं नदी हूं!

तुम सागर बनना..

विलीन करना है मुझे..

तुमने अपना अस्तित्व!

तुमने कहा-

नहीं बनना सागर मुझे!

मैं चाहता हूं तुम नहर बनाे, 

छोटी सी ही,पर..

अपनी पहचान के साथ!

अपने अस्तित्व के साथ! 

मैंने कहा-शब्द हूं मै!

तुम अर्थ हो मेरे!

तुम बिन व्यर्थ मै.. 

तुमने कहा-

तुम ही शब्द,तुम ही अर्थ!

नहीं निर्भर मुझ पर..

तुम्हारे किसी शब्द का अर्थ!

तुम बहो स्वतंत्र..

निर्झर..कविता सी!

मैंने कहा-अच्छा चलो! 

पार्वती बनूंगी मैं!

तुम बनना मेरे शिव! 

न्योछावर कर दूंगी..

तुम पर..

तन,मन,जीवन!

तुमने कहा-

नहीं बनना मुझे शिव!

तुम क्यों लुभाओगी मुझे..

मैं तो स्वयं बंधा हूं..

सम्मोहन में तुम्हारे..

हम दोनों का है..

अपना अपना 

निजी आसमान..

पृथक अस्तित्व!

प्रेम कभी बंधनों से

तय नहीं होता!



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