नज़्म : वो इश्क़ वाले दिन...
नज़्म : वो इश्क़ वाले दिन...
वो इश्क़ वाले दिन भी, सोचो तो क्या सनम थे।
रंगीन कितनी दुनिया, मासूम कितने हम थे।
वो गाँव और वो गलियाँ, वो खेतों का लहरना,
नहरों की मुंडेरों पर, वो प्यार का बहरना
हर शाम मेरा तेरी, खिड़की के नीचे डेरा
बाज़ार के बहाने, कूचे का तेरे फेरा
वो मेरी छत पे मेरा, आना पतंग उड़ाने,
फिर तेरा तेरी छत पर, आना किसी बहाने।
हैं याद मुझ को अब भी, नदिया के वो किनारे,
हम जिन पे टहलते थे, इक दूजे के सहारे।
तुझ को भी याद है क्या, वो पेड़ और वो झूला,
लहराता तेरा आँचल, ख़ुशबू जो मैं न भूला।
वो सजना और सँवरना, वो मिलना और बिछड़ना,
वो मेरी चुहलबाज़ी, और तेरा वो बिगड़ना।
वो बारिशों की सुब्हें, वो सर्दियों की रातें,
वो अपनी शोख़ नज़रें, वो भीगी-भीगी बातें।
आ फिर से जी के देखें, हम अपनी वो जवानी,
बन जाए फिर से शायद, इक प्यारी सी कहानी।