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नवीन जोशी

Abstract Inspirational

0.8  

नवीन जोशी

Abstract Inspirational

सितम

सितम

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एक ही उम्र में क्या क्या ना सितम देख लिए।

ना देख पाए ख़ुदा दैर-ओ-हरम देख लिए।।


(दैर-ओ-हरम = मंदिर और मस्जिद)


मिट्टी को रौंदते पैरों के निशाँ देख लिए।

धूल मे लिपटे खुशगवार क़दम देख लिए।।


पत्थरों में भी कभी खिलते देखा फूलों को।

और फूलों में भी पत्थर के सनम देख लिए।।


हर सूरत पे लगे शाद मुखौटे पे खिली।

इक मुस्कान में भी कितने अलम देख लिए।।


(शाद : खुश, अलम : दुःख, त्रासदी)


होशमंदी तो ज़माने को समझ ना पाई।

मदहोशी ने मगर टूटे भरम देख लिए।।


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