प्रेम
प्रेम
प्रेम क्या है..
समय..
उतना..
जितना..
हम एक दूसरे से मोबाइल मे
चैट करते हुए बिता देते हैं..
मेरी तुम पर लिखी कविता प्रेम है...
या फ़िर
वो कुल्हड़
जो चाय पी कर हम दरिया किनारे छोड़ आए थे..
हमारे प्रेम की क्षणिक निशानी है..
बरसात मे साथ खाए भुट्टे के ठूँठ..
क्या गवाही दे पाएंगे मेरे प्रेम की..
या वो सैकड़ो बर्फ के फूल जो..
किसी हिल स्टेशन मे
हमने साथ गिरते देखे थे
वापस वो अहसास जगा पाएंगे??
प्रेम का..?
अच्छा एक काम करो..
सर्द रातों मे जो लिहाफ़ हमने ओढ़ा था..
हाथों मे हाथ डाल कर..
पूरी रात तुम्हे महसूस किया था..
उसे गुलाबी धूप दिखा दो..
क्या पता प्रेम भाप बन कर..
फ़िर से बरसे..
और एक बार..
फ़िर से भींग जाएं..
हम..
प्रेम की बारिश मे।