प्रेम गली
प्रेम गली
आ जाओ तुम इस प्रेम गली
मन में आस अनेक लिए
आँखों में प्रेम की प्यास प्रिए
है सावन की बेला फिर भी
जाने क्यों मन है उदास प्रिए
तन मन ये मनुहार करे
आ जाओ तुम इस प्रेम गली
मन में आस अनेक लिए
आँखों में प्रेम की प्यास प्रिए
आ जाओ तुम इस प्रेम गली
आज भी वो रुत आई
जो कल बीती थी रात प्रिए
फिर भी ये चितवन सूना है
बीती वो अलबेली रात प्रिए
अब हर पल एहसास ये होता है
जब तुम बिन ये दिल रोता है
उस रैना की बात थी क्या
ये ना पूछो तुम आज प्रिए
मन में आस अनेक लिए
आँखों में प्रेम की प्यास प्रिए
आ जाओ तुम इस प्रेम गली
विरह में तड़पता निर्मल मन।

