इश्क की फितरत
इश्क की फितरत
तेरी यादों में डूबकर गज़ल लिखता हूँ ।
सादे कागज में एहसासों को भरता हूँ ।।
मैं तन्हा दिखता हूँ पर अकेला नहीं हूँ ।
तेरी यादों को मैं सदा साथ रखा करता हूँ ।।
पूछ रहा है हर लम्हा सबब जुदाई का ।
ना हो रूसवा प्यार हमारा चुप रहता हूँ ।।
सोचा था ना खोलूंगा ये राज उमर भर ।
मीठा दर्द अभी भी मन ही मन सहता हूँ ।।
ये राहे पूछ रही मुझसे मेरी मंजिल का पता
कैसे कह दूँ अब भी मैं तुझमें रहता हूँ ।।
सारी उमर बसी थी यादों में बस तू ही तू ।
आँखों में बस तेरी ही सूरत को मैं रखता हूँ ।।
बेखबर "कुमार" नहीं है इश्क की फितरत से ।
इश्क लिखाता हूँ मैं और बस इश्क लिखता हूँ ।

